लियोनेल मेसी की कप्तानी में अर्जेंटीना ने 36 साल के सूखे को खत्म करते हुए फीफा वर्ल्ड कप का तीसरा खिताब जीता। कतर में खेले गए फीफा वर्ल्ड कप 2022 के फाइनल मुकाबले में अर्जेंटीना ने फ्रांस को पेनाल्टी शूटआउट में 4-2 से हराकर ट्रॉफी अपने नाम किया। अर्जेटीना के जीत के साथ ही सोशल मीडिया पर लगातार मेसी और उनकी टीम को जीत की बधाइयां मिल रही है। मेसी के फैंस खुशी के मारे फुले नहीं समा रहे है। अर्जेंटीना में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मेसी के इस जीत को सेलिब्रेट किया जा रहा है। सेलिब्रेट तो बनता ही है क्योंकि एक लम्बे अरसे के बाद फीफा के ट्रॉफी को उसका प्रबल दावेदार (मेसी) चूमा था। आपको जानकर हैरानी होगी कि अगर कुदरत का करिश्मा ना होता तो शायद ही फुटबॉल की दुनिया का यह महान खिलाड़ी हमें मिल पाता क्योंकि मेसी को ग्रोथ हार्मोन डिफेसिएंसी नाम की बीमारी था और अगर इसका असर मेसी पर होता तो वह बौने रह जाते। आइए जानते है मेसी के जिंदगी में आए चुनौतियों के बारे में जिसे मात देकर मेसी ने फुटबॉल की दुनिया पर राज किया।।
कांटो से भरा था मेसी का बचपन
साल 1987 में लियोनेल मेसी का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। फुटबॉल के इस सुपर स्टार का बचपन काफी कठिनाइयों से भरा हुआ था। मेसी की मां घरों में सफाई का काम करती थीं और उनके पिता एक फैक्ट्री में काम करने के साथ-साथ फुटबॉल क्लब में कोच भी थे। शुरुआत से ही फुटबॉल मेसी के रग-रग में बसा था। मेसी सिर्फ पांच साल की छोटी उम्र से ही फुटबॉल खेलना शुरू कर दिया और आठ साल की उम्र में ही मेसी न्यूवैल ओल्ड बॉयज क्लब से जुड़ गए। कल्ब के साथ जुड़ते ही मेसी ने धीरे-धीरे फुटबॉल में अपना जलवा बिखरना शुरू किया।
इस खतरनाक बीमारी को मेसी ने दिया मात
जब मेसी फुटबॉल की दुनिया में अपना कदम मजबूती के साथ रख रहे थे, तभी वो ग्रोथ हार्मोने डिफिसिएंसी नामक खतरनाक बीमारी से पीड़ित हो गए। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों का शारीरिक विकास रुक जाता है और फिजिकल ग्रोथ नहीं होती, जिसके कारण इससे पीड़ित बच्चा बौना ही रह जाता है। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए बहुत ही महंगे और लम्बे चलने वाले ग्रोथ हार्मोन ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ी, जो मेसी के परिवार के लिए बहुत ही कठिन काम था क्योंकि वो बहुत पैसा वाले नहीं थे। शुरुआत में मेसी के क्लब नेविल्स ओल्ड बॉय ने उनके इलाज के लिए हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन अत्यधिक खर्चा सामने के कारण वो भी अपने पैर पीछे खींच लिए। मेसी के इलाज के लिए कोई रास्ता नहीं दिख रहा था, लेकिन इसी बीच कुदरती करिश्मा देखने को मिला। बार्सिलोना ने छोटे फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए टैलेंट हंट प्रोग्राम (Talent Hunt program) शुरू किया और मेसी इसमें सेलेक्ट हो गए गए। इसके बाद बार्सिलोना ने ही मेसी के इलाज का पूरा खर्चा उठाया, जिससे मेसी पर उस खतरनाक बीमारी का असर नहीं हुआ। लगभग 17 साल की उम्र में मेसी ने बार्सिलोना के लिए डेब्यू किया, 2004 में उन्होंने अपना पहला मैच खेला।
फुटबॉल की दुनिया में है मेसी का राज
लियोनेल मेसी फुटबॉल में एक से बढ़कर एक रिकॉर्ड बनाया और ढेर सारी ट्रॉफियां अपने नाम कर चुके है। मेसी ने अब तक सात बार बेलोन डी’ओर, छह बार यूरोपियन गोल्डन शूज जीत चुके है। मेसी ने 2008 में बीजिंग ओलंपिक में अर्जेंटीना को स्वर्ण पदक दिलाया। 2006 विश्व कप में पहली बार मेसी ने कदम रखा और सबसे ज्यादा मैच खेलने और गोल करने वाले पहले अर्जेंटीना के खिलाड़ी बनें। 26 मैच खेलते हुए मेसी ने 13 गोल किया। इसके अतरिक्त मेसी ने ला लिगा में 474 गोल और बार्सिलोना के लिए वह 672 गोल कर चुके हैं। मेसी की आखिरी ख्वाहिश फीफा वर्ल्ड कप जीतने की थी, जो उन्होंने साल 2022 के वर्ल्ड कप में पूरी कर ली।
रियल लाइफ में भी हीरो है मेसी
फुटबॉल के जादूगर लियोनेल मेसी अच्छे फुटबॉलर के साथ साथ एक अच्छे इंसान भी हैं। मेसी हमेशा दुनिय में चैरिटी के कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। एक अच्छा इंसान होने के कारण मेसी की हमेशा कोशिश होती है कि किसी और बच्चे को उन हालातों और बीमारियों से न गुजरना पड़े, जिससे उनको बचपन में गुजरना पड़ा था। मेसी असहाय और विकलांग बच्चों के शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए भी कार्य करते हैं। 2004 से ही मेसी यूनिसेफ के साथ जुड़ें है और 2010 से ही मेसी यूनिसेफ के गुडविल एंबेसडर भी हैं। फुटबॉल में अच्छा प्रदर्शन की जरूरत हो या किसी पीड़ित की मदद करना हो, मेसी कभी भी अपने फैंस को न नाराज नहीं करते।