भारतीय दिग्गज विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत का आज सुबह बहुत तगड़ा कार एक्सीडेंट हो गया। कार की हालत देखकर कहा जा सकता ही की मौत के मुंह में जाकर बाहर आ गए ऋषभ पंत। दरअसल दिल्ली से अपने घर जा रहे पंत को रास्ते में झपकी आ गई और उनकी तेज रफ़्तार से चल कार डिवाइडर से टकरा गई और उसमे आग लग लगी। इस दौरान पैंट गंभीर रूप से घायल हो गए। एक्सीडेंट के बाद एक अनजान शख्स भगवान के रूप में आकर पंत की जान बचाई। इस शख्स ने पंत को सही समय में अस्पताल लेकर पहुंचा। आइए जानते है उस शख्स के बारे में जिन्होने हम सब के हीरो पंत की जान बचाई….
कौन है पंत की जान बचाने वाला शख्स
ऋषभ पंत के एक्सीडेंट के बाद उनकी जान हरियाणा रोडवेज के बस ड्राइवर सुशील ने बचाई। सुशील ने ही पंत को सही समय से अस्पताल लेकर पहुंचा। सुशील के बदौलत पंत आज हमारे सब के बीच सही सलामत है।
पंत को बचाने के बाद सुशील ने एक इंटरव्यू दिया, जिसमे उन्होंने एक्सीडेंट के दौरान सभी इनसाइड स्टोरी को बताया है।
सुशील ने बताया घटना के वक्त घटी सभी बातें
सुशील से जब एक्सीडेंट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि, ” जब हम रोडवेज लेकर हरिद्वार से आ रहे थे। हम 4.25 मिनट पर हरिद्वार से चले थे। जैसे ही हम नारसन के पास पहुंचे 200 मीटर पहले पहुंचा था तो मैंने देखा दिल्ली की तरफ से एक कार 60-70 की स्पीड में आई। वो डिवाइडर से टकराकर पलटती हुई हरिद्वार साइड में आ गई। मैंने सोचा अब तो ये हमारी बस से टकराएगी और हमें कोई बचा नहीं सकता। हम मरेंगे, मेरे पास 50 मीटर का फासला था तभी मैंने सर्विस लेन से निकालकर फर्स्ट लाइन में बस डाल दी। वो गाड़ी दूसरी लाइन में निकल गई, गाड़ी के टुकड़े टूट गए थे। मैंने तुरंत ब्रेक लगाए और खिड़की से कूदकर भागा। मैंने देखा वो व्यक्ति कार से आधा बाहर था, मैंने उसका हाथ पकड़ रखा था तभी कंडक्टर भी साथ आ गया। हमने उसे बाहर लिटा दिया, हमें लगा उसकी मौत हो चुकी है। मैंने देखा कार में आग लगनी शुरू हो गई थी, मैं कार की तरफ गया और देखने लगा कि कोई और तो नहीं है। मैंने उनसे पूछा भाई साहब कार के अंदर कोई और भी व्यक्ति है क्या, उन्होंने कहा कि मैं अकेला ही था। बाद में उन्होंने बताया कि मैं ऋषभ पंत हूं, क्योंकि मैं क्रिकेट का शौकीन नहीं हूं तो ज्यादा जानता नहीं, लेकिन कंडक्टर ने कहा कि ये भारतीय क्रिकेटर है। हमने उसे साइड में डिवाइडर पर लिटाया, उसके तन पर कपड़े नहीं थे। हमने अपने एक यात्री से लेकर उसे चादर दी, उन्होंने बाद में कहा कि मेरे पैसे हैं कार में। हमने आसपास रोड पर जितने भी पैसे बिखरे थे उन्हें सात-आठ हजार रुपये इकट्ठा करके उनके हाथ में दे दिए। तब वो एंबुलेंस में बैठे थे, कंडक्टर ने एंबुलेंस को फोन कर दिया था। मैंने पुलिस को और नेशनल हाईवे को फोन किया था, नेशनल हाईवे से कोई जवाब नहीं आया। एंबुलेंस आ गई थी 15 मिनट बाद, उसके पूरे चेहरे पर खून था, हड़बड़ाए हुए थे। कमर छिली हुई थी. पैर से लंगड़ा रहे थे।”